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Homeकविताएंआओ, मिलकर बचाएँ । Poem on Environment in Hindi

आओ, मिलकर बचाएँ । Poem on Environment in Hindi

अपनी बस्तियों की
नंगी होने से
शहर की आबो-हवा से बचाएँ उसे

बचाएँ डूबने से
पूरी की पूरी बस्ती को
हड़िया में
अपने चहरे पर
संथाल परगना की माटी का रंग
भाषा में झारखंडिपन

ठंडी होती दिनचर्या में
जीवन की गर्माहट
मन का हरापन

भोलापन दिल का
अक्खड़पन, जुझारूपन भी

भीतर की आग
धनुष की डोरी
तीर का नुकीलापन
कुल्हाड़ी की धार
जगंल की ताज हवा

नदियों की निर्मलता
पहाड़ों का मौन
गीतों की धुन
मिट्टी का सोंधापन
फसलों की लहलहाहट

नाचने के लिए खुला आँगन
गाने के लिए गीत
हँसने के लिए थोड़ी-सी खिलखिलाहट
रोने के लिए मुट्ठी भर एकान्त

बच्चों के लिए मैदान
पशुओं के लिए हरी-हरी घास
बूढ़ों के लिए पहाड़ों की शांति

और इस अविश्वास-भरे दौर में
थोड़ा-सा विश्वास
थोड़ी-सी उम्मीद
थोडे-से सपने

आओ, मिलकर बचाएँ
कि इस दौर में भी बचाने को
बहुत कुछ बचा है
अब भी हमारे पास!

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