एक शायरी लिखी है,
कभी मिलोगी तो सुना वुंगा,
तेरी सीरत साफ शीशे की तरह,
मेरे दामन में दाग हज़ारों है,
तू नायाब किसी पत्थर की तरह,
मेरा उठना बैठना बाजारो में है,
तेरी मौजूदगी का एहतराम कर भी लूं,
जब होगा रूबरुह तो ये जज्बात कहाँ चुपा वुंगा,
एक उमर लेके आना,
मैं खाली किताबे ले आउंगा,
तोड़ कर लाने के वादे नहीं,
मैं अपनी कलम से सितारे सजावुंगा ,
मेरी सब्र की इंतहा पर शक कैसा,
मैंने तेरे आने जाने पे ता उमर लिखी है,
ज़मीन पर कोई खास नहीं मेरा,
तू एक बार क़ुबूल कर,
मैं अपने गवाहों को आसमान से बुलाऊंगा एक शायरी लिखी है,
कभी मिलोगी तो सुना वुंगा..!”
– मुनव्वर फारुकी