मैंने किसान से बड़ा कोई चित्रकार नहीं देखा
जो मिटटी से जीवन में रंग भर देते है !
और खेतो से बड़ा कोई बैंक नहीं देखा
चंद दानों के बदले में पूरा घर भर देते है !
खेतो में हरियाली किसान से है
देश में खुशहाली किसान से हैं
ये जो देख रहे हैं ना रोशनी बाजारों में
ये खूबसूरत सी दीवाली किसान से हैं
जब खेतो में मेरे किसान का पसीना बिखरता है
तब जा कर रंग आपके बाजारों का निखरता है
कभी जमीन के एक टुकड़े पर कुछ उगा कर देखो
समझ जाओगे किसान का दर्द एक बार खेत में हल चला कर देखो
कभी जाड़े की रातों में खेतों के पानी में गल कल देखो
समझ जाओगे किसान की मेंहनत तपती धुप में कभी जल कर देखो !!
नहीं हुआ है अभी सवेरा फिर भी पूरब की लाली पहचान ,
चिड़ियों के उठने से पहले खाट छोड़ उठ गया किसान !!
मुझसे शाहो के कसीदे नहीं पढ़े जाते
मैं किसान हूँ भूख का इंतेज़ाम लिखता हूँ
मुझे शीश महल बनाने नहीं आते
मैं भूमिपुत्र हूँ मिटटी से ग़ज़ल लिखता हूँ !!