इच्छाओं का दामन छोटा मत करो ,
जिंदगी के फल को दोनों हाथों से दबा कर निचोड़ो।
याचना नहीं, अब रण होगा,
जीवन-जय या कि मरण होगा।
साहसी मनुष्य की पहली पहचान
यह है कि वह इस बात कि चिन्ता
नहीं करता कि तमाशा देखने वाले
लोग उसके बारे में क्या सोच रहे हैं।
जिस काम से आत्मा सन्तुष्ट रहें
उसी से चेतना भी संतुष्ट रहती है।
रोटी के बाद मनुष्य की
सबसे बड़ी कीमती चीज
उसकी संस्कृति होती है।
ऊँच-नीच का भेद न माने, वही श्रेष्ठ ज्ञानी है,
दया-धर्म जिसमें हो, सबसे वही पूज्य प्राणी है।
क्षत्रिय वही, भरी हो जिसमें निर्भयता की आग
सबसे श्रेष्ठ वही ब्राह्मण है, हो जिसमें तप-त्याग।
दूसरों की निंदा करने से आप अपनी उन्नति को प्राप्त नही कर सकते। आपकी उन्नति तो तभ ही होगी जब आप अपने आप को सहनशील और अपने अवगुणों को दूर करेंगे।
हमारा धर्म पंडितों की नहीं ,
संतो और ऋषियों की रचना है।
हम तर्क से पराजित होने वाले नहीं है।
हाँ, यदि कोई चाहे तो प्यार, त्याग
और चरित्र से हमें जीत सकता है।
पांचाली के चीर-हरण पर जो चुप पाए जायेंगे,
इतिहासों के कालखंड में वे कायर कहलायेगे ।
जैसे सभी नदियां समुद्र में मिलती हैं
उसी प्रकार सभी गुण अंतत!
स्वार्थ में विलीन हो जाता है।
ईष्या की बड़ी बहन का नाम है निंदा।
जो इंसान ईष्यालु होता है,
वही बुरा निंदक भी होता है।
स्वार्थ हर तरह की भाषा बोलता है ,
हर तरह की भुमिका अदा करता है,
यहां तक कि नि:स्वार्थ की भाषा भी नहीं छोड़ता।
सच है, विपत्ति जब आती है ;
कायर को ही दहलाती है,
सूरमा नहीं विचलित होते ;
क्षण एक नहीं धीरज खोते,
विघ्नों को गले लगाते हैं ;
काँटों में राह बनाते हैं …
आज की पीढ़ी रचना कम,
आलोचना ज्यादा करती है.
पुरुष चूमते तब
जब वे सुख में होते हैं,
नारी चूमती उन्हें
जब वे दुख में होते हैं।
मन की व्यथा समेट,
नहीं तो अपनेपन से हारेगा।
मर जायेगा स्वयं,
सर्प को अगर नहीं मारेगा।